रतन टाटा और साइरस मिस्त्री के बीच उन दिनों खटपट काफी बड़ गई थी। इनके बीच की कानूनी लड़ाई भारत की सबसे उच्च कोटि का कॉर्पोरेटिव झगड़ो में से एक है।
जिस समय यह विवाद प्रारम्भ हुआ था। उस समय टाटा ट्रस्ट, जिसमे टाटा संस की हिस्सेदारी 66 पर्सेंट है जिसके अध्यक्ष रतन टाटा थे।
उस समय मिस्त्री परिवार की 18.4 प्रतिशत हिस्सेदारी थी साइरस मिस्त्री टाटा संस के 6 नम्बर के अध्यक्ष थे।
रतन टाटा के सेवानिवृति की घोषणा करने के बाद उन्होंने दिसंबर 2012 में अधिक के रूप में पद को संभाल लिया।
कुछ समय तक यह अध्यक्ष के पद पर जमे रहे।परन्तु अक्टूबर 2016 में यह पद से हटा दिए गए।
उस समय इनको पद से हटाए जाने पर टाटा संस का कहना था कि साइरस मिस्त्री के कामकाज करने का तरीका टाटा ग्रुप के काम करने के तरीके से मेलजोल नही खाते है।
जिस वजह से बोर्ड के सदस्यों ने मिस्त्री जी को पद से हटाने का फैसला लिया है। वर्ष 2016 अक्टूबर 24 को साइरस मिस्त्री को टाटा संस के चेयरमैन पद से हटा दिया गया।
इसके पश्चात् मिस्त्री ने दिसंबर 2016 को कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में इसके खिलाफ याचिका दायर की जिसके बाद कॉरपोरेट सेक्टर में यह ख़बर जंगल में आग की तरह फ़ैल गई लेकिन जुलाई 2018 में कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने मिस्त्री की याचिका खारिज कर दी और टाटा संस के हक में फैसला सुना दिया।
इसके बाद मिस्त्री कंपनी लॉ अपीलेट ट्रिब्यूनल गए दिसंबर 2019 में मिस्त्री को दोबारा से टाटा संस का चेयरमैन बनाने का आदेश दिया।
लेकिन फिर इसके पश्चात टाटा संस ने चेयरमैन मिस्त्री पर सुप्रीम कोर्ट 2020 में अपील दायर की।
इन सबसे कॉर्पोरेटिव जगत में माहौल गरमाया हुआ है लोग तरह तरह के अनुमान लगा रहे है ।
सूत्रों के अनुसार मिस्त्री जी के काम करने का तरीका बड़ा ही पेचीदा था। वह कोई भी फैसला सुनाने से पहले सदस्यों से ठीक तरह से विचार विमर्श नही करते थे।
उन्होनें कुछ फैसले ऐसे लिए भी थे। जिसकी वजह से उन्हें अपना पद खोना पड़ा था।