लता मंगेशकर के निधन से लोगों के दिलों में एक खालीपन आ गया है। 92 साल की उम्र में, महान गायिका सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती थीं और पुराने दिनों की यादें शेयर करती रहती थी।
13 साल की उम्र में अपने करियर की शुरुआत करने वाली लताजी ने हमेशा अपनी निजी जिंदगी को निजी रखा था और अपनी राय बड़ी बेबाकी से रखती थी।
एक बार एक इंटरव्यू के दौरान जब लता मंगेशकर से पूछा गया कि वह अगले जन्म में क्या बनना चाहेंगी तो उन्होंने कहा, “अगला जन्म न हो तो अच्छा है।
अगर मुझे अगला जन्म मिला तो मैं कभी भी लता मंगेशकर नहीं बनना चाहूंगी। लता मंगेशकर होने की परेशानी सिर्फ मैं ही जानती हूं।”
आज 92 साल की उम्र में जब लता मंगेशकर ने दुनिया को अलविदा कहा तो उनकी आवाज बार-बार हमारे कानों में गूंज रही है। दूसरी लता मंगेशकर कभी नहीं हो सकतीं।
उनके जानें से एक युग खत्म हो चुका हैं। उनकी आवाज हमेशा हमारे दिलों में जीवित रहेगी जैसे उन्होंने “मेरी आवाज ही पहचान है गर याद रहे” गाया था।
लता मंगेशकर की दिलीप कुमार से पहली मुलाकात
लता मंगेशकर ने 1942 में मराठी फिल्म किटी हसाल के लिए पहला गाना गाया था, लेकिन यह गाना कभी रिलीज नहीं हुआ। इसके बाद उन्हें कई रिजेक्शन का सामना करना पड़ा। अपने पिता की मृत्यु के बाद, लता मंगेशकर गाने के लिए लोकल ट्रेन में जाती थीं।
एक इंटरव्यू में लता मंगेशकर ने खुलासा किया कि, “मैंने 13 साल की उम्र में काम करना शुरू कर दिया और एक फिल्म में अभिनेत्री की बहन की भूमिका निभाई। इस तरह मेरा सफर शुरू हुआ।
हम पांच भाई-बहन थे और मेरे पिता की मृत्यु के बाद मुझे जिम्मेदारी उठानी पड़ी । पुणे में हमारा घर भी बिक गया था और हमें किराए के घर में रहना पड़ा।”
लता मंगेशकर के मुताबिक मुंबई आने के बाद उन्हें लोकल ट्रेन से सफर करना था और यहीं उनकी मुलाकात दिलीप कुमार से भी हुई थी।
दिलीप कुमार सब कुछ सुनते रहे और अचानक बोले- ‘वो मराठी है, तो वह उर्दू का अच्छा उच्चारण कैसे करेगी?’ कुमार ने मजाक में कहा कि महाराष्ट्रीयन उर्दू के अच्छे जानकार नहीं हैं।
इसने लता मंगेशकर को सोचने को मजबूर कर दिया। इस पर उन्होंने कहा, “मैंने घर आकर उर्दू पढ़ने का फैसला किया। मेरा एक भाई शफीक था, इसलिए मैंने उससे उर्दू भाषा सीखनी शुरू की। वहां से मैंने उर्दू पढ़ना शुरू किया, फिर हिंदी पढ़ी और समय के साथ सब कुछ सीखा।”